खबरों में सावन का जिक्र सिर्फ बाढ़, बारिश, सूखे या अकाल
के रूप में हो रहा है। मायके जाने के लिए पहले सावन की बाट जोहती बेटियों का इंतजार,
फसलों की तैयारी में जुटे किसान की बेचैनी, स्कूल से लौटते भीगे बच्चों की खुशी उनमें
कहीं नहीं झलकती। शायद "डेज" मनाना सीख रहा एक समाज अपने मौसमों का उत्सव
मनाना भूलने लगा है। ऎसा लगता है कि सावन एक पीढ़ी की आंखों में भरा नॉस्टेलजिया का
पानी भर हो गया है, जिसे वह किसी न किसी बहाने से पोंछती रहती है। वरना कोई वजह नहीं
है कि हमारे जनमानस में इस सबसे नम और नरम महीने के प्रति यूं बेरूखी दिखाई दे। निस्संदेह
सावन हमारी प्रकृति के सबसे प्यारे महीनों में से एक है। यही तो महीना है, जो बहती
लू, आंधियों को थाम लेता है। जेठ-आषाढ़ की तपन से रूखे-सूखे हो गए जीवन व प्रकृति को
सावन की फुहारें ही भिगोती व हरा करती हैं। वे महीनों की प्यासी धरा को तृप्त करती
हैं। पहली बारिश के बाद सावन में नीम के पेड़ के नीचे से गुजरते हुए जो कड़वी-कड़वी
सुगंध होती है वह, जी करता है सांसों में भरकर पी लें। पहली बारिश के बाद भी तो बिना
जोते खेतों से आती माटी की सौंधी-सौंधी खुशबू! गूंगे का गुड़ नहीं तो क्या है? इसे
शब्दों में नहीं बांधा जा सकता।
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सावन माह की विशेषता
हिन्दु धर्म के अनुसार सावन के पूरे माह में भगवान शंकर का पूजन
किया जाता है | इस माह को भोलेनाथ का माह माना जाता है | भगवान शिव का माह मानने के
पीछे एक पौराणिक कथा है | इस कथा के अनुसार देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति
से अपने शरीर का त्याग कर दिया था | अपने शरीर का त्याग करने से पूर्व देवी ने महादेव
को हर जन्म में पति के रुप में पाने का प्रण किया था |
अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमालय और रानी
मैना के घर में जन्म लिया | इस जन्म में देवी पार्वती ने युवावस्था में सावन के माह
में निराहार रहकर कठोर व्रत
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